पंचगंगाघाट....गंगा, यमुना, सरस्वति, धूत पापा और किरणा इन पाँच नदियों का संगम तट। कहते हैं कभी, मिलती थीं यहाँ..पाँच नदियाँ..! सहसा यकीन ही नहीं होता ! लगता है कोरी कल्पना है। यहाँ तो अभी एक ही नदी दिखलाई पड़ती हैं..माँ गंगे। लेकिन जिस तेजी से दूसरी मौजूदा नदियाँ नालों में सिमट रही हैं उसे देखते हुए यकीन हो जाता है कि हाँ, कभी रहा होगा यह पाँच नदियों का संगम तट, तभी तो लोग कहते हैं..पंचगंगाघाट। यह कभी थी ऋषी अग्निबिन्दु की तपोभूमी जिन्हें वर मिला था भगवान विष्णु का । प्रकट हुए थे यहाँ देव, माधव के रूप में और बिन्दु तीर्थ, कहलाता था यहाँ का सम्पूर्ण क्षेत्र। कभी भगवान विष्णु का भव्य मंदिर था यहाँ जो बिन्दु माधव मंदिर के नाम से विख्यात था। 17 वीं शती में औरंगजेब द्वारा बिंदु माधव मंदिर नष्ट करके मस्जिद बना दी गई उसके बाद इस घाट को पंचगंगा घाट कहा जाने लगा। वर्तमान में जो बिन्दु माधव का मंदिर है उसका निर्माण 18वीं शती के मध्य में भावन राम, महाराजा औध (सतारा) के द्वारा कराये जाने का उल्लेख मिलता है। वर्तमान में जो मस्जिद है वह माधव राव का धरहरा के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ चढ़कर पूरे शहर को देखा जा सकता है। महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित पत्थरों से बना खूबसूरत हजारा दीपस्तंभ भी यहीं है जो देव दीपावली के दिन एक हजार से अधिक दीपों से जगमगा उठता है। ('आनंद 'की यादें' से)
पंचगंगा घाट के ऊपर चढ़ने की सीढ़ी। सीधे जायेंगे या बायें से होकर, निकलेंगे बिंदु माधव मंदिर के पास। बायें से चढ़ेंगे तो दीपों का हजारा मिलेगा जहाँ कार्तिक पूर्णिमा के दिन असंख्य दीप जलते हैं। ऊपर चढ़ेंगे तो श्रीमठ से होते हुए बायें मस्जिद दिखलाई देगी जिसे हम माधव राव का धरहरा कहते हैं। सामने थोड़ा से मैदान है। वहीं पर बिंदुमाधव का मंदिर है। गली में आगे बढ़ेंगे तो प्रसिद्ध तैंलग स्वामी की प्रतिमा के दर्शन होंगे। अद्भुत है वह प्रतिमा। भीतर जाइये और कुछ समय तक थिर होकर देखते रहिए.. आपको एहसास हो जायेगा कि यह कितनी पावन भूमि है।
माधव राव का धरहरा