इन दो चित्रों में अभिव्यक्ति ढूँढिये। सूर्योदय का समय है। एक आदमी बैठकी लगा रहा है। एक ध्यान मग्न है। एक जाल समेट रहा है, पंडित जी गंगा स्नान को जा रहे हैं और एक स्त्री घाट किनारे बैठी है।
पंडित जी गंगा स्नान के बाद सीढ़ियाँ चढ़ते हुए अचानक से क्रोधित हो जाते हैं! स्त्री पर जल छिड़कते हैं। स्त्री डर कर भाग जाती है।
मैं अवाक देखता हूँ। पता चला कि यह वास्तविक दृश्य नहीं है। 'घाट' फिल्म की शूटिंग चल रही है। आगे बढ़ता हूँ तो एक विचार कौंधता है जेहन में..ऐसे दृश्य जब होते ही नहीं तो क्यों फिल्माये जाते हैं? फिर सोचता हूँ कि हो सकता है यह किसी प्राचीन कथा का संदर्भ हो जब विधवा या मलेच्छ स्त्री की छाया पड़ने से पंडित जी गंगा स्नान के बाद भी अशुद्ध हो जाया करते थे।
नोटः ये आज सुबह की तस्वीरें हैं।
शूटिंग वालों ने आपको वहां घूमने से नहीं रोका?
ReplyDeleteबीच में जाने से रोक रहे थे। मैने किनारे खड़े होकर दो तस्वीरें लीं और चलता बना। :)
ReplyDeleteअतीत हमें छकाने,हमारे सामने कुछ इस प्रकार भी आ खडा होता है. :(
ReplyDeleteकमाल कर दिया आपने, फोटो के साथ का वर्णन लाजवाब है.
ReplyDelete@ ऐसे दृश्य जब होते ही नहीं तो क्यों फिल्माये जाते हैं?
ReplyDelete- बहुत से काम एजेंडे के तहत भी होते हैं/ किए जाते हैं।
दॄष्य बिलकुल भी समझ नहीं आया ...पहली बात तो कोई भी स्त्री उस घाट पर हो ,जहाँ कोई अन्य स्त्री न हो ....मुश्किल लगता है .....दूसरी बात अगर ये प्राचीन कथा का संदर्भ है तब तो और भी मुश्किल रहता होगा शायद .... फिर भी दॄष्य तो है .... क्या अभिव्यक्त हो रहा होगा सोचने पर मजबूर करता ...
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