यह पंचगंगा घाट है। गंगा, यमुना, सरस्वती, धूत पापा और किरणा इन पाँच नदियों का संगम तट। कहते हैं कभी मिलती थीं यहाँ पाँच नदियाँ..! सहसा यकीन ही नहीं होता। लगता है, कोरी कल्पना है। यहाँ तो अभी एक ही नदी दिखलाई पड़ती हैं..माँ गंगे। लेकिन जिस तेजी से दूसरी मौजूदा नदियाँ नालों में सिमट रही हैं उसे देखते हुए यकीन हो जाता है कि हाँ, कभी रहा होगा यह पाँच नदियों का संगम तट तभी तो लोग कहते हैं पंचगंगाघाट।
जल रहे हैं आकाश दीप। चल रहा है भजन कीर्तन। उतर रहा हूँ घाट की सीड़ियाँ..
पास से देखने पर कुछ ऐसे दिखते हैं आकाश दीप। अभी चाँद नहीं निकला है।
यहाँ से दूसरे घाटों का नजारा लिया जाय...
यहाँ बड़ी शांति है। घाट किनारे लगी पीली मरकरी रोशनी मजा बिगाड़ दे रही है। सही रंग नहीं उभरने दे रही..
ध्यान से देखिये..चाँद इन आकाश दीपों के पीछे निकल चुका है।
एक किशोर बड़े लगन से टोकरी में एक-एक दीपक जला कर रख रहा है। ऊपर खींचते वक्त पर्याप्त सावधानी की जरूरत है नहीं तो दिया बुझ सकता है। तेल सब उसी की खोपड़ी में गिर सकता है।
देखते ही देखते चार दीपों वाली टोकरी को पहुँचा दिया आकाश तक। लीजिए बन गया अब यह आकाश दीप।चाँद अब पूरी तरह चमक रहा है।
अद्भुत!!!
ReplyDeleteसुन्दर चित्र और प्रस्तुति।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : चित्तौड़ की रानी - महारानी पद्मिनी
अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस (International Poverty Eradication Day)
सुन्दर चित्र हैं सभी ... मस्त ...
ReplyDeletewow amazing pics.....aap group me daalna kyun bhul jate hain :-(
ReplyDeleteवाह...बहुत सुन्दर चित्र ....बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@जब भी जली है बहू जली है
बनारस की यादें फिर से ताजी हो गईं,सभी फोटो अछ्छे आये हैं.
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