कुछ लोग मित्रों के साथ मार्निंग वॉक करना पसंद करते हैं, कुछ अकेले। मैने दोनो का भरपूर मजा लिया है। दोनो का अलग-अलग आनंद है। साथ में आप मित्रों से जुड़ते हैं, अकेले में प्रकृति से। यह आप पर निर्भर है कि आप किससे जुड़ना पसंद करते हैं! बहुत दिनो बाद मुझे यह एहसास हुआ कि साथ घूमने से अधिक अच्छा है अकेले घूमना। पास में कैमरा हो तो पूछना ही क्या! तस्वीरें खींच कर घर भी ला सकते हैं। समय मिलने पर अभिव्यक्त भी कर सकते हैं, सहेज भी सकते हैं। एहसास को सहेजना और सहेजकर मित्रों के संग बांटना एक दूसरे प्रकार का आनंद है। यूँ कहिये..आम के आम गुठलियों के दाम।
मित्रों से तो आप कभी भी, कहीं भी जुड़ सकते हैं लेकिन प्रकृति से जुड़ने का यह सर्वोत्तम समय है। मित्र अपनी कहेगा, आप अपनी कहेंगे लेकिन यह समय जमाने के दुःख-सुख बांटने का नहीं, सिर्फ और सिर्फ आनंद की अनुभूति का है। जिस्म में होने वाले शीतल पवन के स्पर्श को अनुभव करने का है। मित्रों की बात नहीं, चिड़ियों की चहचहाहट सुनने का है। झरते पत्तों को देखकर नव सृजन के सुखद एहसास में डूब जाने का है। दूब की नोक पर अटकी ओस की बूंदों को हीरे के कण में बदलते हुए देखने का है। छोटे-छोटे पौधों की डालियों में खिले हए फूलों को हिलते हुए देखकर उसी की तरह गरदन हिलाकर मुस्कुराने का है।
सूरज अभी निकला नहीं है। अंधेरा दुम दबाकर भाग रहा है। आँखें रास्तों में आने वाले हर दृश्य को ठीक से देख पा रही हैं। तीन-चार किमी की तेज चाल से चलते-चलते आपके कदम अचानक से ठिठक जाते हैं। आप देखते हैं- खेतों में जमा वर्षा का पानी स्वर्णिम झील में बदल चुका है। ओह! दूर क्षितिज में सूर्योदय हो रहा है।
यह चिड़िया भी मेरी तरह सूर्योदय का आनंद ले रही है! इसके पास कैमरा भी नहीं है और यह कुछ लिख भी नहीं सकती। यह और भी अच्छा है। दिमाग खर्चा नहीं करती, सिर्फ आनंद लेती है।
सूर्य की किरणें जब धरती पर पड़ती हैं तो जर्रे-जर्रे की स्वर्णिम आभा देखते ही बनती है। यह सारनाथ में स्थित 'सारंग नाथ' मंदिर है।
सारंगनाथ का मंदिर ही नहीं, सूर्योदय की किरणें पड़ जांय तो 'सारंग' भी 'स्वर्ण मृग' बन जाता है!
जैन मंदिर में जाने का रास्ता...
यहाँ से सूर्योदय के समय 'धमेख स्तूप' क्या खूब दिखता है!
यह प्रातः भ्रमण का आनंद है। अनुभूति का आनंद है। चित्रों का आनंद है। आनंद ही आनंद है।
बहुत सुंदर चित्र हैं.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्र !
ReplyDeletelatest post प्रिया का एहसास
ऐसे सुंदर प्राकृतिक चित्रो का अवलोकन सिर्फ एक भटकती आत्मा ही करवा सकती है। बहुत चैन आया मुझे। बैचैन अत्मा जी। आभार।
ReplyDeleteसलाह बहुत अछ्छी है और सबको आजमाना चाहिये - खूब घूमिये सुबह-सुबह ,अकेले -अकेले और प्रकृति का आनंद लिजीये. क्या बात है !
ReplyDeleteयेक बात लिखना भूल गया,हर तरफ सुनहरा रंग छाया हुआ है जो,सभी फोटो को ख़ूबसूरत बना रहा है.वाह ! कमाल की फोटोग्राफी है !
ReplyDeleteप्रात: काल प्रकृति से जुड़ाव सहज ही सेहत के लिए अच्छा होता है।
ReplyDeleteसुन्दर तस्वीरें सर।।
नई कड़ियाँ : मेरी भोपाल यात्रा (दूसरा दिन) - साँची का स्तूप और साँची के बौद्ध स्मारक - 1
प्रातःकाल कि सुन्दर तस्वीरें...
ReplyDelete:-)
धन्यवाद।
ReplyDeleteआप लोगों को पोस्ट पसंद आई। आज की मेहनत सफल हुई। सभी को तहे दिल से धन्यवाद। एक बात समझ में नहीं आ रही। चित्र पसंद आ रहे हैं तो इस ब्लॉग के प्रशंसक क्यों नहीं बढ़ रहे?
ReplyDeleteबोलती हुई तस्वीरें
ReplyDeleteहमारे देश में एक मिथक चला आ रहा है कि देवता सोमरस का पान करते हैं और अप्सराओं के साथ राग रंग में स्वर्ग का आनंद उठाते हैं .वह सोम रस क्या है ? सोम का अर्थ है चन्द्रमा और चंद्रदेव को ही जड़ी बूटियों का अधिपति माना गया है .इन जड़ी बूटियों में चन्द्रमा अपनी किरणों से उज्ज्वलता और शान्ति भरते हैं .इसीलिए इन जड़ी बूटियों से जो रसायन तैयार होकर शरीर में नव जीवन और नव शक्ति का संचार करते हैं उन्हें सोमरस कहा जाता है .
ऐसा ही एक सोमरस रसायन मुझे तैयार करने में सफलता मिली है जिसमे मेहनत और तपस्या का महत्वपूर्ण योगदान है .वह है- निर्गुंडी रसायन
और
हल्दी रसायन
ये रसायन शरीर में कोशिका निर्माण( cell reproduction ) की क्षमता में ४ गुनी वृद्धि करते हैं .
ये रसायन प्रजनन क्षमता को ६ गुना तक बढ़ा देते हैं .
ये रसायन शरीर में एड्स प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न कर देते हैं
ये रसायन झुर्रियों ,झाइयों और गंजेपन को खत्म कर देते हैं
ये रसायन हड्डियों को वज्र की तरह कठोर कर देते हैं.
ये रसायन प्रोस्टेट कैंसर ,लंग्स कैंसर और यूट्रस कैंसर को रोकने में सक्षम है.
अगर कोई इन कैंसर की चपेट में आ गया है तो ये उसके लिए रामबाण औषधि हैं.
अर्थात
नपुंसकता,एड्स ,कैंसर और बुढापा उन्हें छू नहीं सकता जो इन रसायन का प्रयोग करेंगे .
मतलब देवताओं का सोमरस हैं ये रसायन.
9889478084