Apr 3, 2014
Mar 30, 2014
Mar 28, 2014
Mar 27, 2014
पानी लाया, कपड़े धो लो...
लोहे का घर ऐसे-ऐसे दृश्य दिखाता है कि कलेजा हिल जाता है! सुबह का समय था। प्लेटफॉर्म में गाड़ी रूकी थी। दूर एक गरीब महिला कपड़े साफ़ कर रही थी। उसका एक या दो वर्ष का नन्हाँ बालक सामने रखे प्लास्टिक के ड्रम से निकालकर लागातार लोटे में पानी लाये जा रहा था। माँ दुखी मन से कपड़े धोये जा रही थी। इन दृश्यों को देखकर बचपन में अपनी पाठ्य-पुस्तक में पढ़ी स्व0 अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध की लिखी यह बाल कविता याद आ गई। जिसमें कवि कल्पना करता है कि माँ अपने बच्चे को जगाती है, मुँह धोने के लिए पानी लाती है और यह गीत गाती है....
यहाँ तो 'लाल' कह रहा है...
रूको माँ! अब आँसू पोछो
पानी लाया, कपड़े धो लो।
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Mar 22, 2014
Mar 18, 2014
Feb 16, 2014
प्रातः भ्रमण
कुछ लोग मित्रों के साथ मार्निंग वॉक करना पसंद करते हैं, कुछ अकेले। मैने दोनो का भरपूर मजा लिया है। दोनो का अलग-अलग आनंद है। साथ में आप मित्रों से जुड़ते हैं, अकेले में प्रकृति से। यह आप पर निर्भर है कि आप किससे जुड़ना पसंद करते हैं! बहुत दिनो बाद मुझे यह एहसास हुआ कि साथ घूमने से अधिक अच्छा है अकेले घूमना। पास में कैमरा हो तो पूछना ही क्या! तस्वीरें खींच कर घर भी ला सकते हैं। समय मिलने पर अभिव्यक्त भी कर सकते हैं, सहेज भी सकते हैं। एहसास को सहेजना और सहेजकर मित्रों के संग बांटना एक दूसरे प्रकार का आनंद है। यूँ कहिये..आम के आम गुठलियों के दाम।
मित्रों से तो आप कभी भी, कहीं भी जुड़ सकते हैं लेकिन प्रकृति से जुड़ने का यह सर्वोत्तम समय है। मित्र अपनी कहेगा, आप अपनी कहेंगे लेकिन यह समय जमाने के दुःख-सुख बांटने का नहीं, सिर्फ और सिर्फ आनंद की अनुभूति का है। जिस्म में होने वाले शीतल पवन के स्पर्श को अनुभव करने का है। मित्रों की बात नहीं, चिड़ियों की चहचहाहट सुनने का है। झरते पत्तों को देखकर नव सृजन के सुखद एहसास में डूब जाने का है। दूब की नोक पर अटकी ओस की बूंदों को हीरे के कण में बदलते हुए देखने का है। छोटे-छोटे पौधों की डालियों में खिले हए फूलों को हिलते हुए देखकर उसी की तरह गरदन हिलाकर मुस्कुराने का है।
सूरज अभी निकला नहीं है। अंधेरा दुम दबाकर भाग रहा है। आँखें रास्तों में आने वाले हर दृश्य को ठीक से देख पा रही हैं। तीन-चार किमी की तेज चाल से चलते-चलते आपके कदम अचानक से ठिठक जाते हैं। आप देखते हैं- खेतों में जमा वर्षा का पानी स्वर्णिम झील में बदल चुका है। ओह! दूर क्षितिज में सूर्योदय हो रहा है।
यह चिड़िया भी मेरी तरह सूर्योदय का आनंद ले रही है! इसके पास कैमरा भी नहीं है और यह कुछ लिख भी नहीं सकती। यह और भी अच्छा है। दिमाग खर्चा नहीं करती, सिर्फ आनंद लेती है।
सूर्य की किरणें जब धरती पर पड़ती हैं तो जर्रे-जर्रे की स्वर्णिम आभा देखते ही बनती है। यह सारनाथ में स्थित 'सारंग नाथ' मंदिर है।
सारंगनाथ का मंदिर ही नहीं, सूर्योदय की किरणें पड़ जांय तो 'सारंग' भी 'स्वर्ण मृग' बन जाता है!
जैन मंदिर में जाने का रास्ता...
यहाँ से सूर्योदय के समय 'धमेख स्तूप' क्या खूब दिखता है!
यह प्रातः भ्रमण का आनंद है। अनुभूति का आनंद है। चित्रों का आनंद है। आनंद ही आनंद है।