26 दिसम्बर, 2013 की सुबह। बनारस-बलिया मार्ग। ट्रेन से खींची गई सूर्योदय की तस्वीरें..। सूर्यदेव दिखने शुरू हुए जब अपनी पैसिंजर ट्रेन गाजीपुर के पास पहुँची। मेरी आँखों से तो दिखने लगे मगर इनकी आभा इतनी फीकी थी कि मेरा कैमरा देख ही नहीं पा रहा था। धीरे-धीरे मेरे कैमरे ने भी देखना शुरू किया...
ट्रेन में उदित हो रहे सूर्य को देखते रहने का आनंद कुछ अलग है। कभी फैले खेतों के मध्य दूर क्षितिज में, कभी किसी घर के पीछे, कभी खेतों में जमा हुए पानी में डूबे हुए तो कभी ट्रेन की अकस्मात होती खड़खड़-खड़खड़ के बीच किसी नदी की लहरियों में तैरते से..
देखते ही देखते सूर्यदेव अपने फुलफॉर्म में आ गये और मेरी आँखों के साथ-साथ मेरे कैमरे की नज़रें भी उनको देखने में असहाय हो गईं।
सूर्य की सुनहरी किरणें धरती पर सोना उगलने लगीं। पंछियों को दाना, जानवरों को भोजन मिलने लगा।
सरसों के फूल सुनहरे पीले हो गये....
मेरी आज की यात्रा यहीं कहीं समाप्त हुई.....