Jan 15, 2013

घोंघा बसंत

कभी 
तुममे था
जीवन !
रेत कुरेदने पर 
निकल आये हो 
बाहर।


अब खाली हो
असहाय
खालीपन के
एहसास से परे


 बन चुके हो 
खिलौना
खेलते हैं तुम्हें 
रेत से बीन-बीन
बच्चे


 ढूँढता हूँ तुममें 
जीवन
काँपता हूँ
भरापूरा
अपने  खालीपने के 
एहसास से!
मैं 
घोंघा बसंत।

6 comments:

  1. ओह! निर्जन में भी जीवन ...या जीवन भी निर्जन ...

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  2. शानदार जीवन दर्शन ... उतनी ही शानदार प्रस्तुति ... :)

    चल मरदाने,सीना ताने - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. खालीपन का एहसास करती सुंदर रचना ... चित्र बहुत सजीव हैं

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  4. चित्रों और शब्द का उत्तम संयोजन, बहुत सुंदर

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  5. ...चित्र से ज्यादा अच्छी कविता है ।

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  6. सुभानाल्लाह........वाह क्या बात ।

    वक़्त मिले तो जज़्बात पर आएं

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