Oct 27, 2013

आकाश दीप।

यह पंचगंगा घाट है। गंगा, यमुना, सरस्वती, धूत पापा और किरणा इन पाँच नदियों का संगम तट। कहते हैं कभी मिलती थीं यहाँ पाँच नदियाँ..सहसा यकीन ही नहीं होता लगता है, कोरी कल्पना है। यहाँ तो अभी एक ही नदी दिखलाई पड़ती हैं..माँ गंगे। लेकिन जिस तेजी से दूसरी मौजूदा नदियाँ नालों में सिमट रही हैं उसे देखते हुए यकीन हो जाता है कि हाँ, कभी रहा होगा यह पाँच नदियों का संगम तट तभी तो लोग कहते हैं पंचगंगाघाट। 

जल रहे हैं आकाश दीप। चल रहा है भजन कीर्तन। उतर रहा हूँ घाट की सीड़ियाँ..



 पास से देखने पर कुछ ऐसे दिखते हैं आकाश दीप। अभी चाँद नहीं निकला है।

यहाँ से दूसरे घाटों का नजारा लिया जाय...



यहाँ बड़ी शांति है।  घाट किनारे लगी पीली मरकरी रोशनी मजा बिगाड़ दे रही है। सही रंग नहीं उभरने दे रही..

 ध्यान से देखिये..चाँद इन आकाश दीपों के पीछे निकल चुका है।

एक किशोर बड़े लगन से टोकरी में एक-एक दीपक जला कर रख रहा है। ऊपर खींचते वक्त पर्याप्त सावधानी की जरूरत है नहीं तो दिया बुझ सकता है। तेल सब उसी की खोपड़ी में गिर सकता है।
















देखते ही देखते चार दीपों वाली टोकरी को पहुँचा दिया आकाश तक। लीजिए बन गया अब यह आकाश दीप।चाँद अब पूरी तरह चमक रहा है।

Oct 20, 2013

वेधशाला

मुगल राजपूत शैली में निर्मित,पत्थर की  झरोखेदार खिड़कियों व सुंदर रंगों से चित्रित छत युक्त मान महल अपनी वेधशाला के लिए प्रसिद्ध है। यह राजेंद्र प्रसाद घाट के ऊपर स्थित है। मान महल आमेर(राजस्थान) के सम्राट मान सिंह द्वारा े1600 वीं इस्वी में बलुए पत्थर से बनवाया गया। यहाँ का गणित मेरे पल्ले नहीं पड़ता। घूमते समय आनंद आता है और इन यंत्रों को देखकर उत्सुकता होती है। यहाँ से गंगा जी का नज़ारा खूबसूरत दिखलाई पड़ता है। 




नीचे हॉल में यह सुदंर पेटिंग लगी है जिससे पूरी वेधशाला का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।



Oct 4, 2013

पागल


यह आदमी नहीं
ऐसा नहीं है।
बात सिर्फ इतनी है
कि यह
हमारे, आपके जैसा नहीं है।

मैने देखा इसे
रेलवे प्लेटफॉर्म पर
एक हाथ में अखबार
दूसरे से
फोन करने का अभिनय
जी हाँ,
वह था अपने
पूरे फॉर्म पर।

सब हँस रहे थे
उसे देखकर
मैने कहा-
कैसा आदमी है!
सबने कहा--
पागल है।

मैने उतारी उसकी तस्वीर
और सोचने लगा
इसे मालूम है
अखबार पढ़ा जाता है
फोन किया जाता है
पागल होने से पहले
यह जरूर
आदमी रहा होगा।

चोर नहीं होगा
डाकू भी नहीं होगा
नेता तो हर्गिज नहीं होगा
मैने कभी
चोर, डाकू या नेता को
पागल होते नहीं सुना।

पागल होने से पहले
इसने बहुत कुछ
सहा होगा
यह जरूर
हमारे-आपके जैसा
रहा होगा।
.........................

नोटः माफ कीजिए। यह चित्रों का आनंद नहीं, चित्र से उभरा दर्द है।