पोखरा की खूबसूरती देखते ही बनती है। यहाँ के पहाड़, यहाँ के झील और यहाँ की नदियाँ प्राकृतिक सुंदरता अद्भुत है। यहाँ तीन झीलें हैं। फेवा ताल की तस्वीरें आपको दिखाईं। अब मैं बेगनास ताल के रस्ते पर हूँ। यहाँ से पैदल 3-4 किमी की खड़ी पहाड़ी पर चढ़ने पर एक स्थान ऐसा आता है जहाँ से दो झीलें एक साथ दिखाई देती हैं। बायें 'बेगनास ताल' और दायें 'रूपा ताल'। मुझे इसका अफसोस रहा कि दोनो की तस्वीरें एक साथ नहीं खींची जा सकती थी। यह पहाड़ी चढ़ते वक्त रास्ते से दिखता एक गाँव है।
यहाँ मैं 2 किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़ कर आया हूँ और थक चुका हूँ। नीचे बेगनास झील दिखाई दे रही है। सामने अन्नपूर्णा हिमालय की चोटियों पर बादल लहराने लगे हैं। मुझे अफसोस है कि झील तक पहुँचते-पहुँचते हिमालय को बादल पूरी तरह ढक देंगे और मैं झील में उसकी परछाई नहीं देख पाउंगा। जहाँ बैठा हूँ वहाँ कॉफी की खेती होती है। हमने वहाँ सूख रहे कॉफी के बीज भी देखे। काली कड़ुवी कॉफी पी। चालीस रूपये कप। विदेशी चाव से पी रहे थे। हम मुँह बनाके।
यह बेगनास झील के ऊपर खड़े होकर कैमरे को जूम करके खींची गई तस्वीर है। अन्नपूर्ण हिमालय की चोटियाँ अभी दिख रही हैं। कुछ ही समय बाद बादलों से ढंक जायेंगी। पहाड़ों में हिमालय को देखना किस्मत की बात होती है। बादल शत्रु नजर आते हैं।
यहाँ से झील साफ दिख रहा है। अन्नपूर्णा की बस एक ही चोटी थोड़ी दिख रही है। बादलों ने पूरी तरह पूरी हिम श्रृंखलाओं को ढक लिया है।
माला गूँथता एक वृद्ध। नीचे पहाड़ी झील।
मार्ग में जहाँ-तहाँ सुंदर फूल खिले थे। बेगनास झील कुछ ऐसा दिख रहा था।
पहाड़ी गाँवों में जहाँ तहाँ झूले टंगे दिखे। झूले पर बैठकर फोटू खिंचवाने में क्या हर्ज है। सामने झील बह रही है। हिमालय को बादलों ने ढंक लिया है।
पहाड़ी मुर्गे बड़े ताकतवर होते हैं। मैं जब यहाँ पहुँचा तो पचासों मुर्गे घूम रहे थे। हमें देखकर एक महिला ने जोर की आवाज लगाई और ये मुर्गे एक साथ फड़-फड़ फड़-फड़ पंख फड़फड़ाते दड़बे में घुस गये। मैने उस महिला से पूछा, "हमसे इतना डरने की क्या जरूरत थी ? "तो वह हंस कर बोली .."यहाँ सियार भी आते हैं और बाघ भी!" यह सुनकर अपन तो चकरा ही गये। :)
अब ऊपर से झील की ओर नीचे उतर रहा हूँ। यह रास्ता अनुमान के आधार पर चला जा रहा है। पहाड़ों की चढ़ाई चढ़ने में दम निकल जाता है लेकिन ढलान उतरना भी बहुत आसान नहीं होता। पैर फिसला तो लुढ़कते चले गये नीचे।
जारी....