Apr 27, 2013

मेरा बेल फूट गया..

चित्रों का आनंद अद्भुत है। इससे खेलने पर ही महसूस किया जा सकता है। कभी वहाँ जाइये जहाँ आपका बचपन गुजरा हो। वहाँ की फोटो खींचिए फिर घर आकर उसे देखिये। कई वाकया ऐसा याद आ जायेगा जो आप बिलकुल भूल चुके होंगे। चित्र देखते ही सहसा कौंध जायेगा जेहन में! फिर उसे महसूस कीजिए फिर उस वाकये को लिखने का प्रयास कीजिए। आनंद ही आनंद। 

मैने ऐसा ही किया। आज एक चित्र को फेसबुक से साझा किया। साझा करने के बाद बचपन की एक घटना अचानक से याद हो आई जिसे मैं भूल चुका था। याद आते ही तत्काल फेसबुक में लिख दिया। आप भी देखिये और पढ़िये..महसूस कीजिए ...चित्रों का आनंद...


चित्र साधारण है। आनंद लेने के लिए चित्रों का बेहतरीन होना आवश्यक नहीं..बस इससे जुड़ने की आवश्यकता होती है। अब घटना पढ़िये....


बेल से जुड़ा एक रोचक वाकया याद आ गया। छुटपन में ही जनेऊ हुआ था। बाल मुंडा था। ऐसे ही बेल लटक रहे थे। एक पका बेल एकदम पास था। देखकर लालच आ गया। पास था लेकिन फिर भी मेरी पहुँच से दूर था। मैने बुद्धि लगाई। पिताजी का छाता लेकर, मुठिया में बेल को फँसाकर तोड़ने लगा मगर बेल था कि टूट ही नहीं रहा था। जानते हैं फिर मैने क्या किया? बेल को छाते की मुठिया से फँसाकर दोनो हाथ से छाता पकड़कर लटक गया।

बेल गिरा मगर जमीन पर नहीं मेरे बेल पर !!! J     

Apr 25, 2013

कमल


यह कमल का तालाब है। तस्वीर पिछले साल की है। खूब खिले थे कमल।



धीरे-धीरे कमल मुर्झाने लगे। तालाब का पानी गंदा हो गया। याद आने लगे दुष्यंत कुमार....

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो, ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं। 


एक दिन माली ने पूरे तालाब की सफाई कर दी। पुराने कमल सब काट-छांट दिये।

समय बदला। धीरे-धीरे नये पत्ते अंकुरित होने लगे। खिलने लगे ताजे कमल।


तालाब फिर से खूबसूरत हो गया।

वैसे दुष्यंत कुमार सिर्फ इस तालाब के पानी को बदलने की बात नहीं कर रहे..:) 

Apr 14, 2013

मोर

कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि आप सौंदर्य की तलाश में बाहर डगर-डगर घूमते फिर रहे हों और सौंदर्य आपके घर में आपकी प्रतीक्षा कर रहा हो! मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ। मैं मार्निंग वॉक से लौटा तो सीधे छत पर चढ़ गया। छत का दरवाजा खोलते ही सामने मोर दिखा। हाथ में कैमरा था सो तुरत एक फोटो खींच लिया। फिर चुप लगाकर एक किनारे बैठ गया। मुझे आश्चर्य हुआ कि वह मुझे देखकर बिलकुल नहीं डरा। मेरे सामने से होकर गुजरा और लगभग आधे घंटे तक छत पर ही रहा। मैने जब अधिक फोटोग्राफी शुरू की तो वह पीछे वाले खेत में कूद गया। 











सारनाथ-3 (अशोक स्तम्भ)



Apr 1, 2013

मुण्डेश्वरी देवी-3

पिछली दो पोस्टों में मैने आपको मुण्डेरी देवी के मार्ग और मंदिर के दर्शन कराये। मैं इस धाम के इतिहास भूगोल के बारे में अधिक कुछ नहीं जानता। अध्ययन करने का समय नहीं मिला लेकिन जितना देखा उतने में बस इतना कह सकता हूँ कि अन्य प्रसिद्ध देवी धाम की की तरह यह भी अत्यधिक रमणीक और दर्शनीय स्थल है।  


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इसे देखने से पता चलता है कि यहाँ का वन विभाग वृक्षारोपण के प्रति जागरूक है। लकड़ी के पिंजड़ेनुमा घेरे में असंख्य पौधों को देखकर खुशी हुई। निःसंदेह जब ये वृक्ष बड़े होंगे तो यह स्थल और भी रमणीक हो जायेगा। इस कार्य की जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है।     


भक्तों की आस्था। छोटे-छोटे घर बनाकर यह कामना करना कि हे देवी! मेरा भी एक घर बन जाय, हृदय को छू लेता है। देवी सभी की मनोकामना पूर्ण करें।

यह वह पहाड़ी मार्ग है जहाँ से चढ़कर धाम तक आना पड़ता है। पता नहीं देवियों के प्रसिद्ध धाम पहाड़ों पर ही क्यों होते हैं!