Jan 26, 2013

पोखरा-3

पोखरा-1, 2 से आगे...

पोखरा की खूबसूरती देखते ही बनती है। यहाँ के पहाड़, यहाँ के झील और यहाँ की नदियाँ प्राकृतिक सुंदरता अद्भुत है। यहाँ तीन झीलें हैं। फेवा ताल की तस्वीरें आपको दिखाईं। अब मैं बेगनास ताल के रस्ते पर हूँ। यहाँ से पैदल 3-4 किमी की खड़ी पहाड़ी पर चढ़ने पर एक स्थान ऐसा आता है जहाँ से दो झीलें एक साथ दिखाई देती हैं। बायें 'बेगनास ताल' और दायें 'रूपा ताल'। मुझे इसका अफसोस रहा कि दोनो की तस्वीरें एक साथ नहीं खींची जा सकती थी। यह पहाड़ी चढ़ते वक्त रास्ते से दिखता एक गाँव है।


यहाँ मैं 2 किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़ कर आया हूँ और थक चुका हूँ। नीचे बेगनास झील दिखाई दे रही है। सामने अन्नपूर्णा हिमालय की चोटियों पर बादल लहराने लगे हैं। मुझे अफसोस है कि झील तक पहुँचते-पहुँचते हिमालय को बादल पूरी तरह ढक देंगे और मैं झील में उसकी परछाई नहीं देख पाउंगा। जहाँ बैठा हूँ वहाँ कॉफी की खेती होती है। हमने वहाँ सूख रहे कॉफी के बीज भी देखे। काली कड़ुवी कॉफी पी। चालीस रूपये कप। विदेशी चाव से पी रहे थे। हम मुँह बनाके।



यह बेगनास झील के ऊपर खड़े होकर कैमरे को जूम करके खींची गई तस्वीर है। अन्नपूर्ण हिमालय की चोटियाँ अभी दिख रही हैं। कुछ ही समय बाद बादलों से ढंक जायेंगी। पहाड़ों में हिमालय को देखना किस्मत की बात होती है। बादल शत्रु नजर आते हैं।


यहाँ से झील साफ दिख रहा है। अन्नपूर्णा की बस एक ही चोटी थोड़ी दिख रही है। बादलों ने पूरी तरह पूरी हिम श्रृंखलाओं को ढक लिया है।


माला गूँथता एक वृद्ध। नीचे पहाड़ी झील।


मार्ग में जहाँ-तहाँ सुंदर फूल खिले थे। बेगनास झील कुछ ऐसा दिख रहा था।


पहाड़ी गाँवों में जहाँ तहाँ झूले टंगे दिखे। झूले पर बैठकर फोटू खिंचवाने में क्या हर्ज है। सामने झील बह रही है। हिमालय को बादलों ने ढंक लिया है।


पहाड़ी मुर्गे बड़े ताकतवर होते हैं। मैं जब यहाँ पहुँचा तो पचासों मुर्गे घूम रहे थे। हमें देखकर एक महिला ने जोर की आवाज लगाई और ये मुर्गे एक साथ फड़-फड़ फड़-फड़ पंख फड़फड़ाते दड़बे में घुस गये। मैने उस महिला से पूछा, "हमसे इतना डरने की क्या जरूरत थी ? "तो वह हंस कर बोली .."यहाँ सियार भी आते हैं और बाघ भी!" यह सुनकर अपन तो चकरा ही गये। :)


अब ऊपर से झील की ओर नीचे उतर रहा हूँ। यह रास्ता अनुमान के आधार पर चला जा रहा है। पहाड़ों की चढ़ाई चढ़ने में दम निकल जाता है लेकिन ढलान उतरना भी बहुत आसान नहीं होता। पैर फिसला तो लुढ़कते चले गये नीचे।


जारी....

Jan 25, 2013

सूर्योदय

पिछली पोस्ट सूर्योदय की प्रतीक्षा में आपने देखा कि सूर्योदय के साथ-साथ लोगों के रोजी रोज़गार और चाहतें भी जुड़ी हैं। पंडित जी आरती कर रहे हैं, फोटोग्राफर सुंदर तस्वीर चाहते हैं, मल्लाहों को पर्यटकों की उम्मीद है, पर्यटकों को सुंदर दृश्य, पंछियों को दाने-पानी की तलाश और धर्मात्माओं को अधिक से अधिक पुन्य बटोर लेने की चाहत।   धीरे-धीरे सूर्योदय होता है। जिसे देख सभी मस्ती में झूमने लगते हैं। सूर्योदय की प्रतीक्षा के बाद सूर्य को उदित होते देखना जिस्म में एक अलग ही उर्जा का संचार करता है। यह प्रतीक्षा करने वाला, देखने वाला ही महसूस कर सकता है। आप इन चित्रों से कितनी उर्जा ग्रहण कर पाते हैं यह आप जाने लेकिन धीरे-धीरे ध्यान से देखते जाइये, महसूस कीजिए कि आप गंगा के घाटों पर घूम रहे हैं, सूर्योदय देख रहे हैं तो एक बात निश्चित है कि आपको आनंद तो आएगा ही।
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सूर्योदय देखकर सभी प्रसन्न हैं। अपनी ओर से इन चित्रों में अभिव्यक्त हो रही अभिव्यक्ति में कुछ जोड़ने चाहें तो  आपका स्वागत है।

Jan 24, 2013

प्रकृति

चित्रों में आनंद तो होता ही है एक अभिव्यक्ति भी होती है। एक दर्शन भी छुपा होता है। बात सिर्फ ध्यान से देखने और समझने की है। सूर्योदय हो चुका है। ये मौलाना रोज की तरह आज भी परिंदों को दाना खिला रहे हैं।


मौलाना अब इनको छोड़कर नीचे उतर चुके हैं। परिंदे भी दाना चुगने में मस्त हैं। 


चित्र में दूर एक  दूसरा आदमी मछलियों को चारा खिला रहा है। मछलियाँ चारा खा भी रही होंगी। एक लड़का जो शायद संगीत का विद्यार्थी है सीढ़ियों पर बैठकर आँखें बंद कर के पूरी तल्लीनता से बांसुरी बजा रहा है।   


अचानक से एक बाज़ कहीं से आ जाता है। कबूतरों पर झपटता है। कबूतर भय के मारे उड़ने लगते हैं। बांसुरी की धुन रूक जाती है। शांत वातावरण अचानक से अशांत हो जाता है। यही प्रकृति है। 


बाज़ के अलावा इन चित्रों में सबकुछ दिख रहा है जो मैने लिखा। बस यही समझना है कि इत्ते परिंदे अचानक से क्यों उड़ने लगे? बांसुरी बजाता लड़का अचानक से क्यों ठिठक गया?  कुछ तो है....


Jan 22, 2013

सूर्योदय की प्रतीक्षा में,,,


यह अस्सी घाट है। सुबह की आरती चल रही है। अभी सूर्योदय नहीं हुआ है। 


कैमरा तैयार है। फोटोग्राफर भी तैयार है। उगते सूरज की तस्वीरें खींचना कौन नहीं चाहता!


ठंडी फिर से बढ़ गई। इन्हे सूर्योदय की नहीं, सूर्योदय देखने वालों की प्रतीक्षा है। जब तक कोई यात्री नहीं मिल जाता ये मल्लाह जाड़े में ऐसे ही आग तापते रहते हैं। आग देख कोई भी ठहर जाता है।


सुबहे बनारस का नज़ारा लेने आये देशी-विदेशी पर्यटकों की नैया निकल चुकी है। घाट पर जल रही बत्तियों को बुझाने वालों की प्रतीक्षा है। वे सूर्योदय के बाद आयेंगे या सूर्यास्त के बाद इसकी कोई गारंटी नहीं है।


ये गंगा स्नान के लिए नहीं, अपने चारे की तलाश में घूम रहे हैं। 


सूर्योदय की तस्वीरें अगले अंक में..तब तक के लिए..नमस्कार।

Jan 17, 2013

सुबहे बनारस-2



गंगा जी में साइबेरियन पंछियों का जमावड़ा है। नाव में सूर्योदय के दर्शन के लिए घूमने वाले यात्री इनके लिए कुछ दाना लिये रहते हैं। आओ-आओ की पुकार लगाते हैं। ये पंछी आवाज को पहचानने लगे हैं या दाने को ये तो वे ही जाने लेकिन सूर्योदय के समय इनको नावों के पीछे-पीछे भागते देखना बड़ा अच्छा लगता है। 


यहाँ घाट पर वृक्ष नहीं हैं। दशाश्वमेध घाट के पास गमलों में पौधे लगे हैं।


ऐसा कोई किला नहीं है घाट में।


बनारस में गंगा भक्ति, शिव भक्ति कोई अचरज की बात नहीं है लेकिन इस बनारसी भक्त को देखिये। ये स्नान-ध्यान के पश्चात गंगा घाट की मिट्टी से ताजे शिवलिंग की स्थापना करने के बाद सूर्योदय के समय शिव को गंगाजल चढ़ा रहे हैं! बनारस और सुबहे बनारस को आत्मसात करने के लिए समय देना होता है। तुलसी, कबीर ने यूँ ही नहीं इसे अपने हृदय में बसाया होगा!

नोटः यह पोस्ट बेचैन आत्मा नामक ब्लॉग में प्रकाशित थी। जब चित्रों का अलग से ब्लॉग बना दिया तो सोचा इन्हें यहाँ सजा दिया जाय।

Jan 15, 2013

घोंघा बसंत

कभी 
तुममे था
जीवन !
रेत कुरेदने पर 
निकल आये हो 
बाहर।


अब खाली हो
असहाय
खालीपन के
एहसास से परे


 बन चुके हो 
खिलौना
खेलते हैं तुम्हें 
रेत से बीन-बीन
बच्चे


 ढूँढता हूँ तुममें 
जीवन
काँपता हूँ
भरापूरा
अपने  खालीपने के 
एहसास से!
मैं 
घोंघा बसंत।

Jan 12, 2013

गंगा घाट पर फोटोग्राफी

गंगा के घाटों पर फोटोग्राफी का आनंद लेते पर्यटकों को प्रतिदिन देखा जा सकता है। आज मैं दिन में घूम रहा था तो बड़ा ही रोचक दृश्य देखने को मिला। एक विदेशी महिला घाट पर बच्चों की न केवल फोटो खीच रही थीं बल्कि बड़े ही प्रेम से अपने अत्याधुनिक कैमरे से धुली हुई तस्वीर निकाल कर इन बच्चों को दे रही थीं। ऐसा करने में उन्हें अपार हर्ष मिल रहा था। उनका उत्साह और उनकी खुशी देखते ही बनती थी। बच्चे भी जाने कहाँ से कूद-कूद कर आ रहे थे और फोटू खीचने का अनुरोध कर रहे थे! जब वे फोटू खींच लेतीं और धुलने लगतीं तो सभी उनको घेर कर ऐसे खड़े हो जाते जैसे ढेर सारी चीटियाँ गुड़ को छोप लेती हैं। 


अब तस्वीर धुलकर निकलने वाली है। सभी बच्चे घेर कर खड़े हैं। आप बच्चों की उत्सुकता और इन भद्र महिला के चेहरे की खुशी देख सकते हैं। 


है न चित्रों में आनंद ?

Jan 6, 2013

गंगा के घाट और पतंगबाजी

कड़ाकी ठंड का कोई असर गंगा घाट के किनारे रहने वाले बच्चों पर पड़ता नहीं दिखता। ये पतंगबाजी के जोश में उसी तरह लगे हैं। शाम के चार बजे जब सूरज बादलों की ओट में कहर रहा था और मरियल कुत्ते सी सिकुड़ने लगी थी जाड़े की धूप घाटों और नावों में ये बच्चे पतंग उड़ाने में मशगूल थे। 


नावों से पतंग उड़ाई जा रही है और नावों में लूटी भी जा रही है कटी पतंग! 


कितना जोश और कितना स्वच्छंद बचपन है! शहरों में रहने वाले इसकी कल्पना ही नहीं कर सकते। मैने इसी बचपन के बारे में लिखा था आनंद की यादें में। इन बच्चों को देखकर मुझे अपना बचपन भी याद आ गया। यहाँ अहीर, मल्लाह या ब्राह्मणों के बच्चों में कोई जाति भेद दूर-दूर तक नहीं दिखता। सभी एक रंग में रंगे गंगा के छोरे ही होते हैं। देखिये, कितना छोटा है यह बालक! नाव चलाकर पतंग लूटने के चक्कर में ....


इतनी छोटी उम्र और यह दोस्ती! हैं न आनंद की यादें के मुन्ना या जंगली की तरह?


लो! लाख प्रयासों के बाद भी..गई पतंग पानी में..!!


यह चित्र अर्चना जी की मांग पर...



/नोटःये तस्वीरें आज की घुमक्कड़ी के परिणाम हैं।

Jan 4, 2013

चिड़िया




नोटः यह गर्मी की नहीं, आज सुबह की तस्वीरें हैं।

Jan 2, 2013

सारनाथ-1

चलिए आज मै आपको सारनाथ ले चलता हूँ। यहाँ के बारे में आपको क्या बताना आप सभी  इस पुन्य भूमि से पूर्व परिचित हैं। आपको बस यहाँ कि कुछ तस्वीरें दिखाना चाहता हूँ जो नववर्ष के पहले दिन की है। यह मुख्य मंदिर है। मंदिर के बीचों बीच प्राचीन घंटा दिखाई दे रहा है। अब यह नहीं बजता। खाली लटकता रहता है..शांत। 


यह रहा घंटा। बजेगा कैसे! कुछ है ही नहीं..।


मंदिर के भीतर भगवान बुद्ध की शानदार प्रतिमा। 


यह वह स्थान है जहाँ भगवान बुद्ध ने अपने पाँच शिष्यों को पहला उपदेश दिया था। अब यहाँ मूर्तियाँ बना दी गई हैं। पीछे वट वृक्ष दिख रहा है। वृक्ष के नीचे जो मंदिर दिख रहा है उसके चारों ओर छोटी-छोटी सुंदर मूर्तियाँ हैं। 


छोटी-छोटी मूर्तियाँ। इनके बारे में फिर कभी लिखूँगा..


बजने वाला विशाल नया घंटा यह रहा।


नववर्ष के पहले दिन शाम को मंदिर के चारों ओर दिये जलाकर सजावट की गई थी।


अंधेरे से लड़ता एक दीपक 


चिंता मत कीजिए। आप यहाँ आते रहे तो मैं यहाँ के बारे में बहुत कुछ बताउंगा।