May 4, 2013

गली आगे मुड़ती है.....


इन्हीं गलियों में भटकते हुए शिवप्रसाद सिंह ने लिखा...गली आगे मुड़ती है।








इन्हीं गलियों में रहते थे भारतेंदु हरिश्चंद्र। सामने है भारतेंदु भवन।

8 comments:

  1. ये तो नहीं कह सकते कि बहुत खूबसूरत।
    लेकिन बढ़िया जानकारी दी है।

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  2. चित्र बिलकुल भी खूबसूरत नहीं हैं सर जी। चित्रों से जो आनंद की अनुभूति हो रही है, वह खूबसूरत है। गली आगे मुड़ती है एक शानदार उपन्यास है। धर्मयुग में इसकी किश्तें छपती थीं तो हम ढूँढकर पढ़ते थे। इस पर दूरदर्शन ने धारावाहिका भी चलाया था। इस उपन्यास में हिंदी, भोजपुरी के साथ-साथ गुजराती, बंगाली शब्दों का प्रयोग है। युवा आक्रोश, प्रेम और तत्कालीन हिंदी आंदोलन को जितना सुंदर इस पुस्तक में अभिव्यक्त किया गया है उसका कोई जवाब नहीं।

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  3. आज की ब्लॉग बुलेटिन एक की ख़ुशी से दूसरा परेशान - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. आनंद आ गया.. बचपन की यादों की गालियां याद आ गयीं.. !!
    आजकल ऐसी गलियाँ मेरी श्रीमती जी के मनपसंद सीरियल सी.आई.डी. में दिखाई देती हैं!!

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  5. मुझे तो अपना पुराना घर और वही गली लगती है.

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  6. सुन्दर तस्वीरें और रोचक जानकारी| :)

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