Jul 22, 2024

साइकिल की सवारी

आज लम्बी साइकिल की सवारी हो गई। आज न नमो घाट न असि घाट, न पूरब न दक्षिण, सारनाथ से सीधे उत्तर दिशा, गाजीपुर जाने वाली सड़क पकड़ ली और लगभग 10 किमी साइकिल चलाकर पहुँच गए विशाल ध्यान केंद्र, 'स्वर्वेद मन्दिर'।


सारनाथ म्यूजियम के सामने से मुनारी रोड पकड़ कर रिंग रोड पर चढ़ गए। कभी यही रास्ता बाइक से जौनपुर जाने का हुआ करता था जब रिंग रोड चढ़ने के बाद अपनी बाइक 70, 80 किमी की रफ्तार से उड़ने लगती थी! आज विपरीत दिशा में जौनपुर के बजाय गाजीपुर की तरफ, वह भी साइकिल से चलने लगे तो होश ठिकाने आ गया। समझ में आ गया कि यह 'हाई वे' मशीन गाड़ी के लिए ही सही है। इसमें कभी चढ़ाई तो कभी ढलान मिलते हैं। 

चढ़ाई चढ़ते समय मन को तसल्ली देता कि कोई बात नहीं, जितना चढ़ाई में परेशानी है, ढलान में बैठकर लुढ़कना ही तो है! इसी रास्ते से लौटना है तो न एक इंच कम, न एक इंच ज्यादा, जितना चढ़ोगे, उतना उतरोगे। दिमाग इन उपदेशों की सत्यता की गारंटी लेता लेकिन मन बेचैन, कहाँ मानने वाला! घबड़ा जाता है। मनुष्य का स्वभाव ही दुःख से घबड़ाने वाला और सुख पर इतराने वाला होता है। हम भी खूब प्रयास कर अपने भीतर, सुख-दुःख में समभाव रखने का एहसास करते हुए चलते रहे। अधिक परेशानी इसलिए भी महसूस हुई कि आज रोज की तुलना में पूरे एक घण्टे विलम्ब से चला था, सूर्यदेव कपाल चढ़ चुके थे, उमस और गर्मी से खूब पसीना बह रहा था।

खजुरी, संदहा होते हुए उमरहाँ पहुँचे तो बाएं, सड़क के किनारे 'श्री दैत्रावीर बाबा' का मन्दिर था। आराम से दर्शन किए, फोटो खींचे या यूँ कहिए दर्शन के बहाने 10 मिनट आराम कर लिए। उमरहाँ से कुछ देर चलने के बाद, दूर से ही दिखने लगता है, निर्माणाधीन 7 मंजिला भव्य 'स्वर्वेद मन्दिर'। अभी ग्राउंड फ्लोर ही बना है, आम जन के लिए द्वार  खोल भी दिया गया है लेकिन मन्दिर का भव्य बाहरी 7 मंजिला निर्माण कहता है कि अभी बहुत कुछ निर्माण शेष है। मुझे लगता है इसका निर्माण 20 वर्ष पहले शुरू हुआ और अभी 20 वर्ष और चलेगा! 

अभी मन्दिर में महर्षि सदाफलदेव जी महाराज की भव्य प्रतिमा, भित्ति चित्र, संगमरमर की दीवारों में स्वर्वेद के अंकित दोहे और सीलिंग के खूबसरत झूमरों-डिजाइन ने आकर्षित किया। फिर भी अभी दूर राज्य से दर्शन के लिए तुरत आने लायक नहीं है, अभी निर्माण कार्य चल रहा है। हाँ, आसपास के मित्र एक बार जा कर देख सकते हैं। अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए मन्दिर से खरीद कर एक 'स्वर्वेद' की पुस्तक लाया हूँ। एक महत्वपूर्ण बात यह कि यह किसी देवी, देवता का मन्दिर नहीं, यह एक विशाल ध्यान केंद्र है और यहाँ नशा त्याग, पवित्र भाव से आना है।

खुलने के समय का ज्ञान न होने के कारण, अपने मॉर्निंग वॉक के समय से एक घण्टे विलम्ब से घर छोड़ने के बाद भी हम लगभग 50 मिनट पहले ही पहुँच गए। मन्दिर का गेट खुलता है, 8 am और हम पहुँच गए 7.10 am! गेट कीपर ने 8 बजे से पहले प्रवेश देने से इंकार करते हुए यह भी बताया कि भीतर साइकिल रखने की कोई व्यवस्था नहीं है।

अब इतने मेहनत से पहुँचे थे तो दर्शन करने के लिए थोड़ी प्रतीक्षा भी कौन सी बड़ी बात है! हम रोज ट्रेन में सफर करने वाले यात्री रहे हैं, प्रतीक्षा करने की आदत पड़ चुकी है। पास ही एक दुकान से बिस्कुट खाई, पानी पिया, चाय पी और दुकानदार से मीठी-मीठी बातें करी। बेटे ने खुद ही कहा, "अंकल जी आप साइकिल बगल में खड़ी कर, निश्चिन्त होकर दर्शन करके आइए, साइकिल यहीं खड़ी मिलेगी।"

दर्शन के बाद लौटते समय धूप और तेज हो चुकी थी लेकिन गर्व था कि आज एक नई जगह साइकिल से घूमे और अब कम से कम बनारस, मेरी साइकिल की जद में आ रहा है।

घर लौटने पर होश आया, आज गुरुपूर्णिमा है। गुरुपूर्णिमा के दिन सद्गुरु महर्षि सदाफलदेव जी महराज के मन्दिर 'स्वर्वेद' में दर्शन करने जाना, महज संजोग है या किसी अदृश्य शक्ति का संदेश, कह नहीं सकता!










https://youtu.be/qYxriQvVqfc?si=E38v0ePt1_7kvMFd

4 comments:

  1. जीवन की गतिशीलता ही दैनिक क्रियाकलापों में नवीनता का संचार करती है।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २३ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  2. वाकई कुछ अलग सा लगा
    चैन मिला
    आभार
    वंदन

    ReplyDelete
  3. सुंदर सारगर्भित आलेख।

    ReplyDelete