Oct 4, 2013

पागल


यह आदमी नहीं
ऐसा नहीं है।
बात सिर्फ इतनी है
कि यह
हमारे, आपके जैसा नहीं है।

मैने देखा इसे
रेलवे प्लेटफॉर्म पर
एक हाथ में अखबार
दूसरे से
फोन करने का अभिनय
जी हाँ,
वह था अपने
पूरे फॉर्म पर।

सब हँस रहे थे
उसे देखकर
मैने कहा-
कैसा आदमी है!
सबने कहा--
पागल है।

मैने उतारी उसकी तस्वीर
और सोचने लगा
इसे मालूम है
अखबार पढ़ा जाता है
फोन किया जाता है
पागल होने से पहले
यह जरूर
आदमी रहा होगा।

चोर नहीं होगा
डाकू भी नहीं होगा
नेता तो हर्गिज नहीं होगा
मैने कभी
चोर, डाकू या नेता को
पागल होते नहीं सुना।

पागल होने से पहले
इसने बहुत कुछ
सहा होगा
यह जरूर
हमारे-आपके जैसा
रहा होगा।
.........................

नोटः माफ कीजिए। यह चित्रों का आनंद नहीं, चित्र से उभरा दर्द है।

6 comments:

  1. नि:संदेह!...........उस आनंद में डूबे आत्मलीन पागल के आनंद के पीछे का दर्द!

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  2. असहनीय रहा होगा तभी तो सहा नहीं औऱ हो गया पागल..पर दुनिया उसकी नजर में पागल..जो वो कहे वो हम न समझे..वो कहे तुम पागल...

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  3. सही कहाँ बुद्धि की भी सीमा है बहुत कुछ सह कर ये सीमा टूट जाती है |

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  4. ओह ! :(

    टेसन बलिया दिख रहा है?

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  5. कोई भी ,कभी भी पागल हो सकता है.वास्तव में सब पागल हैं,वर्तमान में न होकर भूत-भविष्य में सबका मन डोलता रहता है,क्या ये पागलपन नहीं ? सबके पागल होने से ,सब सामान्य आदमी में गिने जाते हैं.ज़रा-सा अधिक मन डोलने लगता है,तो आदमी असामान्य में गिना जाने लगता है.

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